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  • वनौषधि उद्यान (हर्बल गार्डन)

    महाविद्यालय गुरुकुल आश्रम आमसेना में एक बृहत् आयुर्वेदिक फार्मेसी दीन दु:खियों की सेवार्थ संचालित है इस फार्मेसी की औशधि पूर्ति के लिए हमने गुरुकुल में भारत सरकार के कृशि विभाग के सहयोग से वनौशधि उद्यान लगाया है। ताकि गरीब बेसहारा लोगों को सस्ती व अच्छी गुणवत्ता वाली औशधि प्राप्त हो सके। हमारा यह उद्याान 7 एकड़ में फैला हुआ है तथा इसमें अनेक प्रकार के औशधीय पौधें हैं और इनमें पानी की व्यवस्था के लिए बड़ी - बड़ी टंकियों के साथ दो ट्यूबेल है बिजली के अभाव में पानी की कमी न हो इसके लिए 7.5 किलो वाट के जनरेटर की व्यवस्था भी है। इसमें निम्न प्रकार के पौधे लगाये गये हैं :- 

    धतूरा -      इसका धत्तूरक्तिबादि नाम भी है। यह मादक (नशा करने वाला़) और उश्ण है अग्नि को बढ़ाता, कुश्ठ आदि रोगों को दूर करता है।
    घृतकुमारी - इसके ग्वारपाठा, कुमारी आदि अनेक नाम है। यह ठण्डी है, यकृत, प्लीहा, कफज्वर, गंठान, फोड़े, रक्तदोश और चर्मरोग को दूर करती है।
    मूसली - इसके ``खलनी´´ आदि अनेक नाम है। यह मीठी, उश्ण, वीर्य, रसायनी और पुश्टकारी है, गुहा और वायु के रोगों को दूर करती है।
    ब्रह्मी - इसके ``सरस्वती´´ आदि बहुत नाम है। यह ठण्डी, रेचक और मीठी है, बुद्धि और स्मृति को बढ़ाती, ज्वर, पाण्डुरोग तथा कुश्ठ आदि रोगों को दूर करती है।
    आक - इसके दो भेद हैं, सफेद और लाल इसके अर्क, अरख आदि नाम है, उश्ण है, प्लीहा, िशरशूल, कुश्ठ, खुजली, व्रण, गुल्म अशZ, कफ, कृमि और उदरपीड़ा इन सब रोगों को दूर करता है।
    हरड़ - रुखी, उश्ण, हल्की और रसीली है, यह “वास, कास, प्रमेह, अशZ, उदर रोग, कृमि रोग, संग्रहणी, स्तम्भकत्त्व, विशमज्वर, गोला, अफारा, फोड़े, वमन, पीलिया, कामला आदि रोगों को दूर करती है इसमें कड़वा और तीखा रस है। अत: कफ को नाश करता है।
    आंवला - इसमें धात्री अनेक नाम है। यह स्फुर्तिदायक है, इसमें लगभग हरेZ के समान ही गुण हैं परन्तु विशेश करके रक्त पित्त नाशक है, यह अपने खट्टे रस से वादी, मीठे तथा ठण्डे रस से पित्त और रुखे तथा कसैले रस से कफ को नाश करता है।
    बेहड़ा - इसके ``विमीतकादि´´ अनेक नाम है, यह खाने में उश्ण और लगाने में शीतल है, कास “वास को दूर करता है, रुखा है नेत्राों को अमिस्यन्दप्रद है, बालों को बढ़ाता है, इसकी बीज कुछ मादक है, पानी में पीसकर इसे लगाने से दाह को मिटाती है।
    अडुसा - इसके `वासा´ आदि अनेक नाम हैं, वादी को उत्पन्न करता है, कटुहै, कफ, पित्त, रुधिर, “वास, कास, ज्वर, उल्टी, प्रमेह, कुश्ठ और क्षयी इन सबको दूर करने वाला है।
    गिलोय - इसके गुडुची , अमृतादि अनेक नाम है , यह कड़वी , हल्की, पचने के समय मीठी, रसीली, स्तम्भक, कसैली और उश्ण है, यह बल को बढ़ाती है, जठराग्नि को प्रदीप्त करती है, कामला, कुश्ठ, वादी, रुधिर प्रकोप, ज्वर, पित्त और उल्टी इन सबको जीतती है।
    बेल - इसको `लक्ष्मी फल´ आदि अनेक नाम है। यह ग्राही, कसैला, उश्ण, दीपन, पाचन, हल्का, चिकना और तीक्ष्ण है, बल को बढ़ाता है, हृदय के लिए हितकारक है बेल की गिरी वायु, कफ, त्रिदोश, ज्वर, संग्रहणी, शूल और आम को नश्ट करती है।
    एरण्ड - इसको ``दीघZदण्ड´´ आदि अनेक नाम है । यह दो प्रकार का बड़ा और छोटा होता है । रंग “वेत और लाल होता है, यह मीठा, भारी और उश्ण है, शूल, सूजन, कटिपीड़ा, मूत्राशय पीड़ा, िशर पीड़ा, उदरपीड़ा, कुश्ठ और वादी को दूर करने वाला है। फल उश्ण और स्वादिश्ट, भेदन, छारयुक्त और वादी को जीतने वाला है।
    नीम - इसके ``पिचुमन्द´´ आदि अनेक नाम है, यह ठण्डा, हल्का-ग्राही, और पचने में कड़वा है अग्नीवात को उत्पन्न करता है। व्रण, पित्त, कफ, उल्टी, कुश्ठ, प्रमेह और मुंह से बढ़े हुए पानी को बन्द करता है।
    चिरायता - यह दो तीन प्रकार का होता है इसके किराता आदि अनेक नाम है, यह वादी को उत्पन्न करता है, सिन्नपात ज्वर, “वास, कास, पित्त, रुधिर प्रकोप और दाह को दूर करता है, स्वभाव में रुखा, ठण्डा, तीखा और हल्का है ।
    इन्द्रयव - इसके ``कुटजमद्रयव´´ आदि अनेक नाम है यह संग्राही और ठण्डा कड़वा है, तीनों दोशों को दूर करता है, अतिसार, कुश्ठ, रुधिर प्रकोप युक्त अशZ को ठीक करता है।
    शतावरी - यह दो प्रकार की होती है छोटी, बड़ी। यह मीठी और ठण्डी होती है , वीर्य तथा दूध को बढ़ाती है।
    चिरमी - इसको ``गुसा´´ आदि नाम से जानते हैं , बल को वृद्धि करती है, पित्त, कफ, नेत्ररोग, खुजली, फोड़े आदि को दूर करती है यह लाल, सफेद, काला भी होता है।
    बच - इसको `उम्रगंधा, ‘ाड्ग्रन्धा´ आदि नाम है, यह उश्ण, तीखी और कटु है, वमन वाती, स्वर को सुन्दर, मिरगी, कफोन्माद, शूल और वादी इन रोगों को दूर करता है।
    “वेत चन्दन - इसके ``श्वेत चन्दन तिलपर्ण´´ आदि नाम है, यह ठण्डा, हल्का, तीखा और कड़वा है। प्रसन्न प्रदायक, बलदायक, कफ नाशक, पित्तदाह और रुधिर कफ को दूर करता है।
    रक्तचन्दन - इसके ``लोहित , उदि्दश्ट´´ आदि अनेक नाम है यह शीतल, भारी, मीठा, पुश्ट है, नेत्रों के रोग, प्यास, रुधिर पित्त, ज्वर, फोड़े और विश को नश्ट करता है।
    तुलसी - इसके ``सुरसा मुलसिका´´ आदि अनेक नाम है, यह उश्ण, तीक्ष्ण , कड़वी और दीप्ति है, दाह और पित्त को प्रसन्न करती है, कुश्ठ, कफ, वात और पाश्र्वस्थल आदि रोगों को दूर करती है।
    गुलर - इसके ``उदुम्बर जन्तवृक्ष´´ आदि अनेक नाम हैं। शीतल और भारी है, रंग को सुन्दर बनाता है, पित्त, कफ और रुधिर कोप को जीतता है इसका दूध पुश्ट होता है, शौच तथा रुधिरजन्य ग्रन्थी को बैठाता है।
    सेमर - इसके ``शाल्मली´´ आदि नाम है, यह ठण्डा और पुश्ट होता है, रुधिर और पित्त को जीतता है।
    शमी - इसको ``मारवाड प्रान्त में खेजड़ी´´ कहते हैं। यह तुंगा नाम से भी जाना जाता है। यह कड़वी और हल्की है, “वास, कुश्ठ, अशZ और कफ को दूर करता है।